स्वदेशी वस्तुओ का महत्त्व – स्वदेशी वस्तुओ का महत्त्व वास्तव में बहुत ही अधिक है। स्वदेशी का अर्थ है, वह वस्तुएं या सामग्री जो हमारे भारत देश में निर्मित होती हैं स्वदेशी कहलाती हैं। हमें चाहिए कि हम इन स्वदेशी कंपनियों का प्रचार प्रसार करें और स्वदेशी अपनाएं, जिससे हमारा भारत देश आर्थिक रूप से मजबूत हो।
स्वदेशी वस्तुएं जब लोग खरीदते हैं तो उसका पैसा हमारे अपने देश मे ही रहता है। जिससे देश तेजी से विकास करता है। और देश की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती हैं। जब देश के लोगों को स्वदेशी वस्तु का उपयोग करने की आदत लगती है, तो यह हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होती है।
स्वदेशी वस्तुओ का महत्त्व
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‘‘स्वदेशी की भावना का अर्थ है हमारी वह भावना जो हमें दूर को छोड़कर अपने समीपवर्ती परिवेश का ही उपयोग और सेवा करना सिखाती है। उदाहरण के लिए इस परिभाषा के अनुसार धर्म के सम्बन्ध में यह कहा जायेगा कि मुझे अपने पूर्वजों से प्राप्त धर्म का पालना करना चाहिए। यदि मैं उसमें दोषी पाऊँ तो मुझे उन दोषों को दूर करके उस धर्म की सेवा करनी चाहिए। अर्थ के क्षेत्र में मुझे अपने पड़ोसियों द्वारा बनाई गई वस्तुओं का ही उपयोग करना चाहिए और उन उद्योगों की कमियाँ दूर करके उन्हें ज्यादा सम्पूर्ण और सक्षम बनाकर उनकी सेवा करनी चाहिए।’’
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स्वदेशी वस्तुओ का महत्व जानकर आर्थिक महाशक्ति बनने वाले देश।
किसी भी देश को यदि आर्थिक, सामाजिक, तकनिकी , सुरक्षा आदि क्षेत्र में समर्थ व महाशक्ति बनना है, तो स्वदेशी मन्त्र को अपनाना ही होगा दूसरा कोई मार्ग नहीं। जैसे
अमरीका
लम्बे समय से अंग्रेज़ों का गुलाम रहा, 200 वर्ष पहले इस देश का कोई अस्तित्व नहीं था। पर जब वहां स्वदेशी के मन्त्र को लेकर जार्ज वाशिंगटन ने क्रांति किया तो आज अमरीका विश्व में महाशक्ति बन चुका है। दुनिया के बाजार में अमरीका का 25 प्रतिसत सामान बिकता है।
जापान
जापान 3 बार गुलाम हुआ पहले अंग्रेज़, फिर डच पुर्तगाली और स्पेनिश का, फिर तीसरी बार अमरीका का जिसने सन 1945 में जापान के दो महत्वपूर्ण शहर हिरोशिमा व नागासाकी पर परमाणु बम गिरा दिए थे। 100 वर्ष पहले तक जापान की दुनिया में कोई पहचान नहीं थी। लेकिन स्वदेशी के जज्बे के कारण जापान पिछले 60 वर्षों में पुनः दुनिया की महाशक्तियों में से एक है।
चीन
चीन भी अंग्रेज़ों का ही गुलाम था। अंग्रेज़ों ने चीन के लोगों को अफीम के नशे में इस कदर डुबो दिया था, कि वो सिर्फ जिन्दा लाश बन कर रह गए थे। सन 1949 तक चीन भिखारी देश था। विदेशी क़र्ज़ में डूबा था। बाद में वहां एक स्वदेशी के क्रांतिकारी नेता माओजेजांग ने पुरे देश की तस्वीर ही बदल दी। आज चीन आर्थिक क्षेत्र में अप्रत्याशित ऊंचाई पर विकास कर रहा है। आज दुनिया के बाजार में चीन का 25 प्रतिसत सामान बिकता है।
मलेशिया
पिछले 50 वर्षों के पहले मलेशिया एक गुमनाम देश था। जिसकी कोई पहचान नहीं थी। किन्तु स्वदेशी के कारण मलेशिया मात्र 25 वर्षों में खड़ा हो गया , और दुनिया के बाजार में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने लगा।
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भारत का गौरवपूर्ण इतिहास
विदेशी बैसाखियों पर कोई भी देश ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकता। अंग्रेज़ों के आने से पहले हमारा देश हर क्षेत्र में विकसित व महाशक्ति था। अंग्रेज़ों के शासनकाल में लार्ड मैकाले ने भारत की गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था को बदल दिया। पढाई जाने वाली इतिहास की किताबों में भारत के गौरवपूर्ण इतिहास में फेर-बदल कर दिया। भारत को गरीब देश, सपेरों का देश, लुटेरों का देश, हर तरह से बदहाल देश दर्शाया गया। जबकि इंग्लैंड व स्कॉटलैंड के ही करीब 200 इतिहासकारों ने भारत के बारे में इतिहास की किताबों में जो लिखा है, वो इसके उलट दूसरी ही कहानी बयां करती हैं। इन इतिहासकारों के अनुसार :-
- भारत के गांवों में जरूरत के सभी सामान तैयार होते थे, शहर से सिर्फ नमक आती थी।
- सन 1835 तक भारत का 33 प्रतिसत सामान दुनिया के बाजारों में जाता था।
- भारत में तैयार लोहा दुनिया में सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। सरगुजा (छत्तीसगढ़) के आस-पास लोहे के 1000 कारखाने थे।
- यूरोप के देशों की तुलना में भारत की फसल प्रति एकड़ तीन गुना ज्यादा होती थी।
- गुरुकुल शिक्षा पद्धति बहुत मजबूत थी, वैदिक गणित के सूत्रों से गड़ना कैलकुलेटर से भी शीघ्र होती थी।
- भारत के गांवों में लोगों के घर में सोने के सिक्कों के ढेर पाए जाते थे, जिसे वो गिनकर नहीं तौल कर रखते थे।
- भारत का कपड़ा विदेशों में सोने के वजन के बराबर तौल में बिकता था।
- भारत में इतनी अधिक समृद्धि थी कि मंदिर भी सोने के बनवा दिए जाते थे।
इसलिए अब जरूरत आन पड़ी है कि, भारत को और अधिक लुटने से बचाएं। और अपने देश को समृद्ध व शक्तिशाली बनाने के लिए स्वदेशी आंदोलन को हम सब तेज़ गति से आगे बढ़ाएं। इस हेतु व्यक्तिगत स्तर पर हम यह जरूर करें –
- जहाँ तक संभव हो,स्वदेशी व विदेशी कंपनियों की सूची अपने पास रखें और स्वदेशी वस्तुएं ही खरीदें।
- अपने देश की निर्मित वस्तुओं की गुणवत्ता में कमीं होने पर निर्माणकर्ताओं से गुणवत्ता में सुधार के लिए निवेदन करें।
- यदि व्यवस्था बन सके तो आप स्वयं शून्य तकनीकी के उत्पाद बनाना प्रारम्भ करें।
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हमारी habits .
स्वदेशी स्टोर : आम जीवन में हर किसी को ये मुमकिन नहीं हो पाता कि सभी विदेशी और स्वदेशी कंपनियों के नाम की सूची अपने पास रख सकें, और सामान खरीदते वक़्त इस बात का ध्यान रह पाना भी मुश्किल हो जाता है, कि जो सामान हम खरीद रहें हैं वो कहाँ से निर्मित है? ऐसा इसलिए है कि, हमारी आदत में ही ये शामिल नहीं है। हम वस्तुओं के दाम देख कर ही सस्ते-महंगे के अनुसार सामान लेते हैं। फिर चाहे वो सामान चीन से बना हो या फिर पाकिस्तान से बना हो। अतः हमें स्वदेशी स्टोर से ही समान खरीदने की habit अपनानी होगी। साथ ही price के बजाय स्वदेशी को महत्वपूर्ण मानना होगा।
वर्तमान में स्वदेशी प्रयास कैसे है?
पीएम नरेंद्र मोदी ने भी लोगों से ‘लोकल फॉर वोकल’ की बात पर जोर दिया है। पीएम के इस आह्वान के बाद लोग स्वदेशी वस्तुएं अपनाने पर जोर दे रहे है। स्वदेशी जागरण मंच ने गृह मंत्रालय की तर्ज पर रक्षा मंत्रालय की आर्मी कैंटीन और अन्य मंत्रलाय में भी स्वदेशी लागू करने की बात कही है। लोगों को स्वदेशी अपनाने के लिए घर-घर प्रचार करने से लेकर सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर स्वदेशी और विदेशी वस्तुओं की सूची भेजकर अपने अभियान से जोड़ने का काम शुरु कर दिया है।
केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की कैंटीन में भी स्वदेशी लागू
पीएम के वोकल फॉर लोकल के आग्रह के बाद व्यापक प्रभाव शुरु हो गया है। गृह मंत्रालय ने भी कहा है कि, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की कैंटीन पर अब सिर्फ स्वदेशी उत्पादों की ही बिक्री होगी। अगर इसी तरह रक्षा मंत्रालय और अन्य मंत्रालय में भी ऐसा होता है तो अच्छा होगा। हमें बाहर से सामान मंगवाने की ज़रुरत नहीं है कि, अब हम सब भारत में ही निर्माण कर सकते है। हम देश में उद्योगों का विकास करेंगे। जिससे रोजगार के अवसर निर्माण होंगे। इससे अर्थव्यवस्था को बहुत बल मिलेगा । रोजगार का सृजन होगा। छोटे बड़े उद्योगों का विकास के साथ-साथ कृषि के क्षेत्र में भी बहुत विकास देखने को मिलेगा। इस प्रकार स्वदेसी वस्तुओ को अपनाना हम सबके लिए उपयुक्त रहेगा ।
वोकल फॉर लोकल।
वैसे देखा जाये तो केंद्र सरकार का ‘वोकल फॉर लोकल’ का कदम मेक इन इंडिया का दूसरा रूप नहीं है। बल्कि यह उससे बेहतर है। मेक इन इंडिया में विदेशी कंपनियां भारत में आकर उद्योग लगाने पर काम करती हैं। जबकि ‘वोकल फॉर लोकल’ में स्वदेशी के साथ ही स्थानीय प्रोडक्टस पर फोकस किया जाएगा। हमारा नारा और हमारा सपना ‘चाहत से देसी, जरूरत में स्वदेशी अब आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है।
जनजागरुकता अभियान होना चाहिए।
स्वदेशी हर देश के लिए हर समय बहुत आवश्यक होता है। स्वदेशी की बात करने का मतलब यह नहीं है कि, विदेशों से व्यापार संबंध समाप्त कर लेना। ऐसा बिल्कुल नहीं है। भारत के कई देशों से व्यापारिक संबंध रहे हैं। लेकिन जो हमारे देश में बन सकता है या उपलब्ध है उसका, इस्तेमाल अब हम करेंगे। कई संगठन समाज में स्वदेशी अपनाने को लेकर एक जनजागरुकता अभियान शुरु कर सकते है। और करना भी चाहिए।
लोकल फॉर वोकल का प्रयास अच्छा है। लेकिन इसके लिए थोड़ा समय लगेगा। इसका पूरा असर लंबे समय बाद अर्थव्यवस्था पर नजर आएगा। हम आत्मनिर्भर बनकर खड़े होंगे।
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