विश्वास क्या है – हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है। इस संसार में हर खोयी हुई चीज आसानी से हासिल की जा सकती हैं, लेकिन विश्वास के खो जाने पर इसे फिर हासिल नहीं किया जा सकता। इसलिए इसे कायम रखना चाहिए। ख़ुद पर विश्वास करना एक सकारात्मक सोच हैं जो हमें शारीरिक और मानसिक रूप से ऊर्जावान बनाता हैं।
जीवन में कितना भी बड़ा संकट आ जाए लेकिन ख़ुद पर confidence करना कभी भी बंद न करे। विदित रहे जब तक आप ख़ुद पर Believe नहीं करते, तब तक दूसरे लोग भी आप पर विश्वास नहीं कर सकते। इसमें वो शक्ति है जिससे उजड़ी दुनिया में प्रकाश लाया जा सकता है।
विश्वास क्या है ?
विश्वास एक मनभावना गुण है और इस किताब में हम जिन आदमियों और औरतों के बारे में अध्ययन करेंगे उन सबने इस गुण को बहुत अनमोल समझा था। लेकिन आज बहुत-से लोग विश्वास के बारे में ऐसा नहीं समझते क्योंकि उन्हें लगता है कि विश्वास का मतलब है किसी बात को यूँ ही सच मान लेना, फिर चाहे उसका कोई सबूत न भी हो। मगर विश्वास का यह मतलब नहीं है कि आँख मूँदकर किसी बात पर यकीन कर लेना, क्योंकि ऐसा करना खतरनाक होता है। न ही विश्वास बस मन में उठनेवाली कोई भावना है, क्योंकि यह आसानी से मिट भी सकती है। और सिर्फ यह मानना काफी नहीं कि एक परमेश्वर है, क्योंकि “दुष्ट स्वर्गदूत भी यही मानते हैं और थर-थर काँपते हैं।”
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इसकी शक्ति को विस्तार से समझे इस लोकोपदेशक प्रसंग द्वारा
एक राजा था। वह अपनी प्रजा का पालन अपनी संतान के समान करता था। एक बार संयोग से राजा की उंगली पर घाव निकल गया। पीड़ा से बेचैन होकर राजा ने मंत्री को बुलवाया। मंत्री ने दर्द से बेहाल राजा को सांत्वना देते हुए कहा,” परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है।” राजा सोचने लगा, यह मंत्री कितना पत्थर दिल है। इस हालत में भी मुझ पर इसे दया नहीं आती! कुछ समय बाद रोग के बढ़ जाने पर राजा की उंगली गल गई।
वह अपने जीवन के बारे में भी निराश हो गया। उसने फिर मंत्री को बुलवाया। मंत्री ने इस बार भी वही पुराना विश्वास दोहराया। क्रोध से जल-भुन कर राजा ने सोचा, यह दुष्ट मंत्री बहुत ही कृतघ्न है। स्वस्थ हो जाने पर मैं अवश्य ही इसको मौत के घाट उतार दूंगा। कुछ दिनों बाद जब राजा स्वस्थ हो गया और एक दिन राजा और मंत्री दोनों शिकार पर गए। दोनों घोड़े से जा रहे थे। राजा को मंत्री के प्रति गुस्सा था ही। थोड़ा आगे बढ़ने के बाद सामने एक सूखे हुआ कुएं को देखकर राजा के मन में प्रतिशोध लेने का पाप समा गया। उसने तेजी से झटका देकर मंत्री को कुएं में गिरा दिया।
उस समय भी मंत्री ने वही पुराने शब्द दोहराए। राजा को लगा कि मंत्री मर गया। राजा अब अकेला हो गया। सैनिक जंगल में कहीं बिछड़ गए थे और सूर्य देवता भी अपनी किरणें समेटकर अस्त हो गए। राजा को जंगल से बाहर निकलने का मार्ग नहीं सूझ रहा था। जंगली जानवर इधर-उधर नजर आ रहे थे। राजा डर के मारे एक वृक्ष पर चढ़कर जा छिपा। उसने घोड़े को वृक्ष के नीचे बांध दिया था।
अब रात काफी घनी हो चुकी थी। इतने में किसी दूसरे राजा के सैनिकों का बहुत बड़ा दल उस भयानक जंगल में अपने राजा के मानव बलि के संकल्प के लिए मनुष्य की तलाश में घुस आया। घोड़े को वृक्ष के साथ बंधा देखकर उनको Believe हो गया कि इसका सवार भी अवश्य ही आस-पास छिपा बैठा होगा! वे लोग मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे, कि यदि कोई मनुष्य उनके हाथ लग जाएगा, तो वे उसे प्रात: काल राजा के पास ले जाएंगे।
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राजा देवी को उसकी बलि चढ़ाकर अपना संकल्प पूरा कर लेगा और उनके कर्तव्य का पालन भी हो जाएगा। पल भर में उनमें से एक सैनिक कूदकर वृक्ष पर जा चढ़ा और राजा को बांधकर नीचे उतार लाया। राजा को घोड़े पर बिठाकर वे विजय के गीत गाते हुए अपने राज्य की ओर चल पड़े और हाथ लगे शिकार को अपने स्वामी की सेवा में हाजिर कर दिया।
अब बलि देने की तैयारियां शुरू हो गई। अभी जल्लाद ने तलवार उठाई ही थी कि राजा की नजर बलि जीव के कटे हुए अंग पर जा टिकी। राजा हैरान होकर चिल्ला उठा, अरे पापियों, यह क्या कर रहे हो? तुम नहीं जानते कि अंग-भंग मनुष्य की बलि नहीं दी जाती! हटाओ इसे यहां से। फिर क्या था, राजा अपने प्राणों की खैर मनाता हुआ वहां से तत्काल भाग निकला।
राजधानी लौटते हुए मार्ग में राजा के विचारों ने पलटा खाया। सोचने लगा कि मंत्री का विश्वास कितना सही है। उंगली कटी होने के कारण ही मेरी जान बची है। तभी राजा सोचने लगा कि अब मैं शीघ्र ही अपने नेक दिल मंत्री के पास जाता हूं। मैने नाहक उसकी हत्या करने की कोशिश की। कुएं के पास पहुंचकर राजा जोर से पुकारने लगा। हे धर्मात्मा बंधुवर! क्या तुम अब भी जिंदा हो? राजा के वचन सुनकर मंत्री ने उत्तर दिया, राजन्! मैं कुएं में मृत्यु तुल्य जीवन बिता रहा हूं। इच्छा हो, तो मुझे निकालिए।
राजा ने मंत्री को कुएं से बाहर निकाला। बार-बार दोष स्वीकार करते हुए उससे क्षमा मांगी। मंत्री ने कहा, महाराज परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है। मेरा कुएं में गिरना भी एक शुभ लक्षण था। अंगहीन होने के कारण आप तो बच गए, परंतु मुझ भले-चंगे मनुष्य का मौत से छुटकारा पाना संभव न होता। इसलिए मानना पड़ता है कि परमात्मा जो भी करता है भलाई के लिए ही करता है।
विश्वास की आवश्यकता- इन्सान को जीवन में किसी भी कार्य के लिए आत्म विश्वास की आवश्यकता होती है इसलिए अपने विवेक द्वारा मंथन करने के पश्चात ही कार्य को अंजाम देना उचित होता है । अन्य इन्सान पर Believe करने से ही जीवन के कार्य सुचारू रूप से सम्पन्न होते हैं। तथा आपसी सम्बन्ध प्रगाढ़ होते हैं। जो समाज में रहने के लिए आवश्यक हैं। Believe वह पूंजी है जिसे जहां खर्च किया जाएगा वहां लाभ मिलेगा।
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विश्वास के महत्व पर अनमोल विचार
(1)
विश्वास जीतना बड़ी बात नहीं है,
विश्वास बनाए रखना बड़ी बात है।
(2)
यह कच्चे धागे की तरह होता है जो टूट जाता है,
तो कभी जुड़ता नहीं, जुड़ता भी है तो उस में गांठ पड़ जाती है।
(3)
अपने आप पर किया गया confidence
दूसरों से धोखा खाने से बचाता है।
(4)
जब विश्वास टूट जाता है तो
फिर हर रिश्ता टूट जाता है।
(5)
विश्वास रब्बर की तरह है,
जो कि हर गलती पर छोटा और कम होता जाता है।
(6)
अटूट विश्वास ही
सफलता की नीव है।
(7)
आपकी सोच ही से ही विश्वास का जन्म होता है,
और आपकी सोच से ही विश्वास खत्म होता है।
(8)
हर व्यक्ति आप पर विश्वास करें यह जरूरी नहीं,
लेकिन आप किस पर विश्वास करते है यह जरूरी है।
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(9)
विश्वास और स्वार्थ दोनों साथ-साथ चलते है,
इनमें भेद करना आपको स्वयं सीखना होगा।
(10)
आपको उन लोगों पर विश्वास जरूर करना चाहिए,
जिनको अपने आप पर विश्वास हो।
(11)
विश्वास कोहरे की तरह होता है,
जो थोड़ी सी हवा चलने पर टूट सकता है।
(12)
जब आपकी इच्छा की पूर्ति नहीं हो पाती,
तो आपका विश्वास टूट जाता है।
(13)
विश्वास समंदर की तरह है यह कितना गहरा होगा,
यह आपकी सोच और ईमानदारी पर निर्भर करता है।
(14)
विश्वास खरीदा नहीं जा सकता,
यह तो आपके कर्मों पर निर्भर करता है।
(15)
जिसको स्वयं पर विश्वास होता है,
वह कुछ भी कर सकता है।
(16)
विश्वास करना हो तो हमेशा अपने आप पर करें,
क्योंकि स्वयं पर किया गया विश्वास कभी टूटता नहीं।
(17)
विश्वास पर ही हर रिश्ता कायम है,
चाहे वह प्यार का हो चाहे वह व्यापार का हो।
(18)
विश्वास, खुद पर रखो तो ताकत बन जाता है, दूसरे पर रखो तो कमजोरी बन जाता है।
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(19)
पैसे से आप सब कुछ खरीद सकते है,
लेकिन विश्वास और ईमानदारी नहीं।
(20)
जिंदगी में रिश्ते बहुत बनते है,
लेकिन विश्वास के रिश्ते कम ही बनते है।
(21)
यकीन करना सीखो,
शक तो पूरी दुनिया करती है।
(22)
आशा और निराशा दोनों,
आपके आत्मविश्वास पर निर्भर करती है।
(23)
जब जिंदगी में मुश्किलें बढ़ जाती है तो
ईश्वर पर किया गया विश्वास ही काम आता है।
(24)
विश्वास एक छोटा शब्द है,
बोलो तो एक सेकेंड लगता है,
सोचो तो एक मिनट लगता है,
समझो तो एक दिन लग जाता है,
पर साबित करने में पूरी जिंदगी लग जाती है।
(25)
ईश्वर कहता है मैं तेरे सामने नहीं आस-पास हूं,
बंद कर पलकों को प्यार से, दिल से याद कर,
मैं कोई और नहीं तेरा विश्वास हूं।
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(26)
दिखावा और विश्वास दोनों अलग-अलग है।
(27)
विश्वास ही सत्य की परिभाषा है।
(28)
सौभाग्य और भाग्य दोनों आपके,
कर्म और विश्वास पर निर्भर करते है।
(29)
किसी पर यकीन ना हो कोई बात नहीं,
लेकिन कमजोर विश्वास किसी पर ना हो।
(30)
विश्वास उदय का कारण बनता है और
अंधविश्वास पतन का कारण बनता है।
(31)
आत्मविश्वास हो तो आप शिखर पर जा सकते है,
ना हो तो आप एक पत्थर तक नही चढ़ सकते है।
(32)
यकीन बहते हुए पानी की तरह है,
एक बार बह जाने के बाद फिर से नहीं आता।
(33)
भरोसा करना अच्छी बात है लेकिन
अपने से पहले दूसरों पर नहीं करना।
(34)
सही कर्म करो, सत्य बोलो,
लोग आप पर Believe नहीं तो,
अविश्वास भी नहीं करेंगे।
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(35)
प्यार और Believe कभी मत खोना क्योंकि
प्यार हर किसी से नहीं होता
और विश्वास हर किसी पर नहीं होता।
(36)
भरोसा सत्य से शुरू होता है और
सत्य पर ही खत्म होता है।
(37)
इस दुनिया में रिश्ते आसानी से बन जाते है लेकिन
विश्वास बनने में जिंदगी बीत जाती है।
(38)
जो आप पर आंखें बंद करके Believe करता है,
उसका विश्वास कभी नहीं तोड़ना चाहिए।
(39)
झूठ बोलना भरोसे की नींव तोड़ने समान है।
(40)
हम किसी से तब ही डरते है,
जब हमें अपने आप पर भरोसा नहीं होता है।
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