Thursday, April 25, 2024
Homeधार्मिक कहानियाँशरद ऋतु वर्णन

शरद ऋतु वर्णन

शरद ऋतु वर्णन

चौपाई :
* बरषा बिगत सरद रितु आई। लछमन देखहु परम सुहाई॥
फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥1॥
भावार्थ : हे लक्ष्मण! देखो, वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद् ऋतु आ गई। फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई। मानो वर्षा ऋतु ने (कास रूपी सफेद बालों के रूप में) अपना बुढ़ापा प्रकट किया है॥1॥
* उदित अगस्ति पंथ जल सोषा। जिमि लोभहिं सोषइ संतोषा॥
सरिता सर निर्मल जल सोहा। संत हृदय जस गत मद मोहा॥2॥
भावार्थ : अगस्त्य के तारे ने उदय होकर मार्ग के जल को सोख लिया, जैसे संतोष लोभ को सोख लेता है। नदियों और तालाबों का निर्मल जल ऐसी शोभा पा रहा है जैसे मद और मोह से रहित संतों का हृदय!॥2॥
* देखि मनोहर सैल अनूपा। रहे तहँ अनुज सहित सुरभूपा॥
मधुकर खग मृग तनु धरि देवा। करहिं सिद्ध मुनि प्रभु कै सेवा॥2॥
भावार्थ : मनोहर और अनुपम पर्वत को देखकर देवताओं के सम्राट् श्री रामजी छोटे भाई सहित वहाँ रह गए। देवता, सिद्ध और मुनि भौंरों, पक्षियों और पशुओं के शरीर धारण करके प्रभु की सेवा करने लगे॥2॥
* रस रस सूख सरित सर पानी। ममता त्याग करहिं जिमि ग्यानी॥
जानि सरद रितु खंजन आए। पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए॥3॥
भावार्थ : नदी और तालाबों का जल धीरे-धीरे सूख रहा है। जैसे ज्ञानी (विवेकी) पुरुष ममता का त्याग करते हैं। शरद ऋतु जानकर खंजन पक्षी आ गए। जैसे समय पाकर सुंदर सुकृत आ सकते हैं। (पुण्य प्रकट हो जाते हैं)॥3॥
Article about Success Define
Category Badisoch
Facebook follow-us-on-facebook-e1684427606882.jpeg
Whatsapp badisoch whatsapp
Telegram unknown.jpg
Written by Dr.PS,yadav
updated on 7th jan 2021
Other Post on this site बच्चो को काबिल बनाये कैसे?
* पंक न रेनु सोह असि धरनी। नीति निपुन नृप कै जसि करनी॥
जल संकोच बिकल भइँ मीना। अबुध कुटुंबी जिमि धनहीना॥4
भावार्थ : न कीचड़ है न धूल? इससे धरती (निर्मल होकर) ऐसी शोभा दे रही है जैसे नीतिनिपुण राजा की करनी! जल के कम हो जाने से मछलियाँ व्याकुल हो रही हैं, जैसे मूर्ख (विवेक शून्य) कुटुम्बी (गृहस्थ) धन के बिना व्याकुल होता है॥4॥ (शरद ऋतु)
* बिनु घन निर्मल सोह अकासा। हरिजन इव परिहरि सब आसा॥
कहुँ कहुँ बृष्टि सारदी थोरी। कोउ एक भाव भगति जिमि मोरी॥5॥
भावार्थ : बिना बादलों का निर्मल आकाश ऐसा शोभित हो रहा है जैसे भगवद्भक्त सब आशाओं को छोड़कर सुशोभित होते हैं। कहीं-कहीं (विरले ही स्थानों में) शरद् ऋतु की थोड़ी-थोड़ी वर्षा हो रही है। जैसे कोई विरले ही मेरी भक्ति पाते हैं॥5॥ (शरद ऋतु)
दोहा :
* चले हरषि तजि नगर नृप तापस बनिक भिखारि।
जिमि हरिभगति पाइ श्रम तजहिं आश्रमी चारि॥16॥
भावार्थ : (शरद् ऋतु पाकर) राजा, तपस्वी, व्यापारी और भिखारी (क्रमशः विजय, तप, व्यापार और भिक्षा के लिए) हर्षित होकर नगर छोड़कर चले। जैसे श्री हरि की भक्ति पाकर चारों आश्रम वाले (नाना प्रकार के साधन रूपी) श्रमों को त्याग देते हैं॥16॥ (शरद ऋतु)
चौपाई :
* सुखी मीन जे नीर अगाधा। जिमि हरि सरन न एकऊ बाधा॥
फूलें कमल सोह सर कैसा। निर्गुन ब्रह्म सगुन भएँ जैसा॥1॥
भावार्थ : जो मछलियाँ अथाह जल में हैं, वे सुखी हैं, जैसे श्री हरि के शरण में चले जाने पर एक भी बाधा नहीं रहती। कमलों के फूलने से तालाब कैसी शोभा दे रहा है, जैसे निर्गुण ब्रह्म सगुण होने पर शोभित होता है॥1॥
* गुंजत मधुकर मुखर अनूपा। सुंदर खग रव नाना रूपा॥
चक्रबाक मन दुख निसि पेखी। जिमि दुर्जन पर संपति देखी॥2॥
भावार्थ : भौंरे अनुपम शब्द करते हुए गूँज रहे हैं तथा पक्षियों के नाना प्रकार के सुंदर शब्द हो रहे हैं। रात्रि देखकर चकवे के मन में वैसे ही दुःख हो रहा है, जैसे दूसरे की संपत्ति देखकर दुष्ट को होता है॥2॥
* चातक रटत तृषा अति ओही। जिमि सुख लहइ न संकर द्रोही॥
सरदातप निसि ससि अपहरई। संत दरस जिमि पातक टरई॥3॥
भावार्थ : पपीहा रट लगाए है, उसको बड़ी प्यास है, जैसे श्री शंकरजी का द्रोही सुख नहीं पाता (सुख के लिए झीखता रहता है) शरद् ऋतु के ताप को रात के समय चंद्रमा हर लेता है, जैसे संतों के दर्शन से पाप दूर हो जाते हैं॥3॥
* देखि इंदु चकोर समुदाई। चितवहिं जिमि हरिजन हरि पाई॥
मसक दंस बीते हिम त्रासा। जिमि द्विज द्रोह किएँ कुल नासा॥4॥
भावार्थ : चकोरों के समुदाय चंद्रमा को देखकर इस प्रकार टकटकी लगाए हैं जैसे भगवद्भक्त भगवान्‌ को पाकर उनके (निर्निमेष नेत्रों से) दर्शन करते हैं। मच्छर और डाँस जाड़े के डर से इस प्रकार नष्ट हो गए जैसे ब्राह्मण के साथ वैर करने से कुल का नाश हो जाता है॥4॥
दोहा :
* भूमि जीव संकुल रहे गए सरद रितु पाइ।
सदगुर मिलें जाहिं जिमि संसय भ्रम समुदाइ॥17॥
भावार्थ : (वर्षा ऋतु के कारण) पृथ्वी पर जो जीव भर गए थे, वे शरद् ऋतु को पाकर वैसे ही नष्ट हो गए जैसे सद्गुरु के मिल जाने पर संदेह और भ्रम के समूह नष्ट हो जाते हैं॥17॥ (शरद ऋतु)
आलोचनाओं को इग्नोर कैसे करे सौभाग्यशाली कैसे बने
ऑनलाइन शिक्षा के फायदे और नुकसान क्या है ? क्यूँ ज़रूरी है अच्छा स्वास्थ्य
हेल्थ टिप्स हिंदी में
स्वावलंबी बनने के लाभ
कैसे है अनुशासन ही सफलता की कुंजी
online classes के फायदे और नुकसान जानिए
योग है जीवन जीने की कला कैसे
भगवान शिव के राज
कैसे हुआ भगवान शिव का अवतरण दान का फल और महत्व
ऐसी सोच बदल देगी जीवन
कैसे लाए बिज़्नेस में एकाग्रता
लाइफ़ की क्वालिटी क्या है
बड़ी सोच से कैसे बदले जीवन
सफलता की राह कैसे चले अमीरों के रास्ते कैसे होते है
कैसे सोचे leader की तरह
किस तरह बड़ी सोच पहुँचाती है शिखर पर
क्या आप डर से डरते हो या डर को भगाते हों ? गौमाता के बारे में रोचक तथ्य
सक्सेस होने के रूल
हेल्थ ही असली धन है
हीरे की परख सदा ज़ौहरी ही जाने
What is Web Hosting in Hindi
SEO क्या है – Complete Guide In Hindi
चैम्पीयन कैसे बने

Google search engine क्या है ? जानिए विस्तार पूर्वक

Google Translate Uses – गूगल अनुवाद ऐप जानिए क्या है ?

सुग्रीव का वैराग्य

श्री रामजी से हनुमानजी का मिलना और श्री राम-सुग्रीव की मित्रता

friendship क्यो जरूरी ? जानिए विस्तार पूर्वक ।

हर जानकारी अपनी भाषा हिंदी में सरल शब्दों में प्राप्त करने के लिए  हमारे फेसबुक पेज को लाइक करे जहाँ आपको सही बात पूरी जानकारी के साथ प्रदान की जाती है । हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहाँ क्लिक करें ।


Autumn description

Hey Laxman! Look, the rain has passed and the most beautiful autumn has come. The bloated Kas covered the entire earth. It is as if the rainy season (in the form of white hair) has revealed its old age.

Agastya’s star rises and soaks up the water of the road, just as Santhosh absorbs greed. The pure water of the rivers and ponds is gracing it like the heart of saints devoid of item and attachment!

Seeing Manohar and Anupam Parvat, the emperor of the gods, Shri Ramji, stayed there along with the younger brother. Devas, Siddhas and sages started serving the Lord by wearing the bodies of eyebrows, birds and animals.

The water of the river and the ponds is slowly drying up. For example, wise men abandon Mamata. Knowing the autumn, the birds came. Like time, beautiful sukrit can come. (Merit appears))

There is neither mud nor dust? Due to this, the earth (being pure) is giving such beauty as the policy of the king of ethics. Fishes are getting distraught due to the scarcity of water, like a fool (void of discretion) Kutumbi (householder) is distraught without money.

The clear sky without clouds is going to look like a beautiful God who leaves all hopes and beautifies. Somewhere (in rare places), there is a little rain of autumn. Just like anyone rarely finds my devotion.

The king (ascetic), ascetic, merchant and beggar (for victory, penance, trade and begging, respectively) rejoiced and left the city. For example, having devotion to Shri Hari, he renounces the four ashrams (various types of means).

The fish that are in the bottomless waters are happy, as if there is not a single obstacle when Shri Hari goes to the shelter. How does the pond beautify with the flowering of lotuses, like Nirguna Brahma is adorned when it is attuned

Bumblebees are echoing with unique words and birds are becoming beautiful types of various types. Seeing the night, Chakve is suffering in the same way as the wicked one sees on the property of another.

The papiha is rotted, he is very thirsty, as Shri Shankar ji’s maleficent does not get pleasure (he bends for happiness) The moon takes away the heat of autumn at night, as sins are overcome by the sight of saints.

The communities of the Chakor gaze at the moon in such a way as the Bhagavadhaktas find the Lord and see him (with innocent eyes). Mosquitoes and dens were destroyed in the fear of winter in such a way that the family is destroyed by hating a Brahmin.

(Due to the rainy season), the creatures that were filled on earth, they get destroyed in the autumn, just as groups of doubt and confusion are destroyed when Sadhguru is found.

parmender yadav
parmender yadavhttps://badisoch.in
I am simple and honest person
RELATED ARTICLES

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular