श्रीमद्भगवद्गीता का महत्व
कल्याण की इच्छा वाले मनुष्यों को उचित है कि मोह का त्याग कर अतिशय श्रद्धा-भक्तिपूर्वक अपने बच्चों को अर्थ और भाव के साथ श्रीगीताजी का अध्ययन कराएँ।
स्वयं भी इसका पठन और मनन करते हुए भगवान की आज्ञानुसार साधन करने में समर्थ हो जाएँ क्योंकि अतिदुर्लभ मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर अपने अमूल्य समय का एक क्षण भी दु:खमूलक क्षणभंगुर भोगों के भोगने में नष्ट करना उचित नहीं है।
श्रीमद्भगवद्गीता अथवा गीताजी का पाठ आरंभ करने से पूर्व निम्न श्लोक को भावार्थ सहित पढ़कर श्रीहरिविष्णु का ध्यान करें–
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
भावार्थ : जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो देवताओं के भी ईश्वर और संपूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है, अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ।
यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै-
र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो-
यस्तानं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम:।।
र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो-
यस्तानं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम:।।
भावार्थ : ब्रह्मा, वरुण, इन्द्र, रुद्र और मरुद्गण दिव्य स्तोत्रों द्वारा जिनकी स्तुति करते हैं, सामवेद के गाने वाले अंग, पद, क्रम और उपनिषदों के सहित वेदों द्वारा जिनका गान करते हैं, योगीजन ध्यान में स्थित तद्गत हुए मन से जिनका दर्शन करते हैं, देवता और असुर गण (कोई भी) जिनके अन्त को नहीं जानते, उन (परमपुरुष नारायण) देव के लिए मेरा नमस्कार है।
अर्जुनविषादयोग- पहला अध्याय
सांख्ययोग-नामक दूसरा अध्याय
कर्मयोग- तीसरा अध्याय
ज्ञानकर्मसंन्यासयोग- चौथा अध्याय
कर्मसंन्यासयोग- पाँचवाँ अध्याय
आत्मसंयमयोग- छठा अध्याय
ज्ञानविज्ञानयोग- सातवाँ अध्याय
अक्षरब्रह्मयोग- आठवाँ अध्याय
राजविद्याराजगुह्ययोग- नौवाँ अध्याय
विभूतियोग- दसवाँ अध्याय
विश्वरूपदर्शनयोग- ग्यारहवाँ अध्याय
भक्तियोग- बारहवाँ अध्याय
सांख्ययोग-नामक दूसरा अध्याय
कर्मयोग- तीसरा अध्याय
ज्ञानकर्मसंन्यासयोग- चौथा अध्याय
कर्मसंन्यासयोग- पाँचवाँ अध्याय
आत्मसंयमयोग- छठा अध्याय
ज्ञानविज्ञानयोग- सातवाँ अध्याय
अक्षरब्रह्मयोग- आठवाँ अध्याय
राजविद्याराजगुह्ययोग- नौवाँ अध्याय
विभूतियोग- दसवाँ अध्याय
विश्वरूपदर्शनयोग- ग्यारहवाँ अध्याय
भक्तियोग- बारहवाँ अध्याय
क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग- तेरहवाँ अध्याय
गुणत्रयविभागयोग- चौदहवाँ अध्याय
पुरुषोत्तमयोग- पंद्रहवाँ अध्याय
दैवासुरसम्पद्विभागयोग- सोलहवाँ अध्याय
श्रद्धात्रयविभागयोग- सत्रहवाँ अध्याय
मोक्षसंन्यासयोग- अठारहवाँ अध्याय
गुणत्रयविभागयोग- चौदहवाँ अध्याय
पुरुषोत्तमयोग- पंद्रहवाँ अध्याय
दैवासुरसम्पद्विभागयोग- सोलहवाँ अध्याय
श्रद्धात्रयविभागयोग- सत्रहवाँ अध्याय
मोक्षसंन्यासयोग- अठारहवाँ अध्याय
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2 thoughts on “श्रीमद्भगवद्गीता का महत्व (Importance of Srimad Bhagavad Gita)”