Friday, April 19, 2024
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विभीषण का वस्त्राभूषण बरसाना और वानर-भालुओं का उन्हें पहनना

विभीषण का वस्त्राभूषण बरसाना और वानर-भालुओं का उन्हें पहनना

* बहुरि विभीषन भवन सिधायो। मनि गन बसन बिमान भरायो॥
लै पुष्पक प्रभु आगें राखा। हँसि करि कृपासिंधु तब भाषा॥2॥

भावार्थ:-फिर विभीषणजी महल को गए और उन्होंने मणियों के समूहों (रत्नों) से और वस्त्रों से विमान को भर लिया। फिर उस पुष्पक विमान को लाकर प्रभु के सामने रखा। तब कृपासागर श्री रामजी ने हँसकर कहा-॥2॥
* चढ़ि बिमान सुनु सखा बिभीषन। गगन जाइ बरषहु पट भूषन॥
नभ पर जाइ बिभीषन तबही। बरषि दिए मनि अंबर सबही॥3॥
भावार्थ:-हे सखा विभीषण! सुनो, विमान पर चढ़कर, आकाश में जाकर वस्त्रों और गहनों को बरसा दो। तब (आज्ञा सुनते) ही विभीषणजी ने आकाश में जाकर सब मणियों और वस्त्रों को बरसा दिया॥3॥
* जोइ जोइ मन भावइ सोइ लेहीं। मनि मुख मेलि डारि कपि देहीं॥
हँसे रामु श्री अनुज समेता। परम कौतुकी कृपा निकेता॥4॥
भावार्थ:-जिसके मन को जो अच्छा लगता है, वह वही ले लेता है। मणियों को मुँह में लेकर वानर फिर उन्हें खाने की चीज न समझकर उगल देते हैं। यह तमाशा देखकर परम विनोदी और कृपा के धाम श्री रामजी, सीताजी और लक्ष्मणजी सहित हँसने लगे॥4॥
दोहा:
* मुनि जेहि ध्यान न पावहिं नेति नेति कह बेद।
कृपासिंधु सोइ कपिन्ह सन करत अनेक बिनोद॥117 क॥
भावार्थ:-जिनको मुनि ध्यान में भी नहीं पाते, जिन्हें वेद नेति-नेति कहते हैं, वे ही कृपा के समुद्र श्री रामजी वानरों के साथ अनेकों प्रकार के विनोद कर रहे हैं॥117 (क)॥
* उमा जोग जप दान तप नाना मख ब्रत नेम।
राम कृपा नहिं करहिं तसि जसि निष्केवल प्रेम॥117 ख॥
भावार्थ:-(शिवजी कहते हैं-) हे उमा! अनेकों प्रकार के योग, जप, दान, तप, यज्ञ, व्रत और नियम करने पर भी श्री रामचंद्रजी वैसी कृपा नहीं करते जैसी अनन्य प्रेम होने पर करते हैं॥117 (ख)॥
चौपाई :
भालु कपिन्ह पट भूषन पाए। पहिरि पहिरि रघुपति पहिं आए॥
नाना जिनस देखि सब कीसा। पुनि पुनि हँसत कोसलाधीसा॥1॥
भावार्थ:-भालुओं और वानरों ने कपड़े-गहने पाए और उन्हें पहन-पहनकर वे श्री रघुनाथजी के पास आए। अनेकों जातियों के वानरों को देखकर कोसलपति श्री रामजी बार-बार हँस रहे हैं॥1॥

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चितइ सबन्हि पर कीन्ही दाया। बोले मृदुल बचन रघुराया॥
तुम्हरें बल मैं रावनु मार्‌यो। तिलक बिभीषन कहँ पुनि सार्‌यो॥2॥
भावार्थ:-श्री रघुनाथजी ने कृपा दृष्टि से देखकर सब पर दया की। फिर वे कोमल वचन बोले- हे भाइयो! तुम्हारे ही बल से मैंने रावण को मारा और फिर विभीषण का राजतिलक किया॥2॥
निज निज गृह अब तुम्ह सब जाहू। सुमिरेहु मोहि डरपहु जनि काहू॥
सुनत बचन प्रेमाकुल बानर। जोरि पानि बोले सब सादर॥3॥
भावार्थ:-अब तुम सब अपने-अपने घर जाओ। मेरा स्मरण करते रहना और किसी से डरना नहीं। ये वचन सुनते ही सब वानर प्रेम में विह्वल होकर हाथ जोड़कर आदरपूर्वक बोले-॥3॥
* प्रभु जोइ कहहु तुम्हहि सब सोहा। हमरें होत बचन सुनि मोहा॥
दीन जानि कपि किए सनाथा। तुम्ह त्रैलोक ईस रघुनाथा॥4॥
भावार्थ:-प्रभो! आप जो कुछ भी कहें, आपको सब सोहता है। पर आपके वचन सुनकर हमको मोह होता है। हे रघुनाथजी! आप तीनों लोकों के ईश्वर हैं। हम वानरों को दीन जानकर ही आपने सनाथ (कृतार्थ) किया है॥4॥
* सुनि प्रभु बचन लाज हम मरहीं। मसक कहूँ खगपति हित करहीं॥
देखि राम रुख बानर रीछा। प्रेम मगन नहिं गृह कै ईछा॥5॥
भावार्थ:-प्रभु के (ऐसे) वचन सुनकर हम लाज के मारे मरे जा रहे हैं। कहीं मच्छर भी गरुड़ का हित कर सकते हैं? श्री रामजी का रुख देखकर रीछ-वानर प्रेम में मग्न हो गए। उनकी घर जाने की इच्छा नहीं है॥5॥

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Wearing robes of Vibhishan and wearing them of apes

Then Vibhishanji went to the palace and filled the plane with groups of jewels (gems) and with clothes. Then brought the Pushpak Vimana and placed it in front of the Lord. Then Shri Ramji, a kind man, laughed and said-
Hey Sakha Vibhishan! Listen, get on the plane, go to the sky and rain clothes and jewelry. Then (hearing the command), Vibhishanji went to the sky and showered all the jewels and clothes.
Whose mind likes what it takes. Taking the bees in the mouth, the apes then spit them out as not eating. Seeing this spectacle, the humorous and graceful shrines, including Shri Ramji, Sitaji and Laxmanji started laughing.
Those whom the sages do not even find in meditation, who are called Ved Neti-neti, they are doing many kinds of humor with the sea of grace Shri Ramji apes.
(Shiva says-) O Uma! Even after performing many types of yoga, chanting, charity, penance, sacrifice, fasts and rules, Shri Ramchandraji does not do the same kind of grace as if there is exclusive love.
The bears and apes found clothes and ornaments and wearing them they came to Shri Raghunathji. Seeing the apes of many castes, Kosalpati Shri Ramji is laughing again and again.
Shri Raghunathji had compassion on everyone seeing him with kindness. Then he said soft words – O brothers! With your power I killed Ravana and then ruled Vibhishan.
Now all of you go to your respective homes. Keep remembering me and do not fear anyone. On hearing these words, all the monkeys feared in love and folded their hands and said respectfully.
God Everything you say makes you feel happy. But we are delighted to hear your words. Hey Raghunathji! You are the God of the three worlds. You have done Sanath (gratitude) only by knowing humble apes.
We are dying of shame due to hearing the (such) words of the Lord. Can mosquitoes also interest Garuda? Seeing the attitude of Shri Ramji, the bear-monkey became engrossed in love. They do not want to go home.
parmender yadav
parmender yadavhttps://badisoch.in
I am simple and honest person
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