भारत-चीन सम्बध– भारत के साथ चीन का सीमा विवाद एक पुराना रोग है।यह रोग चीन की नीति और नीयति के कारण बना हुआ है ।लेकिन अब समय आ गया है कि, इस बीमारी का जड़ से ईलाज किया जाये। विगत 22 वर्षों के दौरान सीमा विवाद समाप्त करने के सन्दर्भ में लगभग 14 बार प्रयास किए गए। हाल ही में महत्वपूर्ण क़दम के अंतर्गत 59 चीनी apps को भारत ने सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बैन किया है ।
भारत-चीन सम्बध संक्षिप्त कालक्रम-
Contents
१९५० के पहले हजारों वर्षों तक तिब्बत ने एक ऐसे क्षेत्र के रूप में काम किया जिसने भारत और चीन को भौगोलिक रूप से अलग और शान्त रखा। 20वीं सदी के मध्य तक भारत और चीन के बीच संबंध न्यूनतम थे। एवं कुछ व्यापारियों, तीर्थयात्रियों और विद्वानों के आवागमन तक ही सीमित थे।
भारत और चीन के मध्य व्यापक तौर पर बातचीत की शुरुआत भारत की स्वतंत्रता (1947) और चीन की कम्युनिस्ट क्रांति (1949) के बाद हुई।
भारत और चीन के मध्य व्यापक तौर पर राजनयिक सम्बन्ध-
भारत-चीन सम्बध– 1 अप्रैल 1950 को चीन और भारत ने राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किए। केएम पैनिकर को चीन में भारत का पहला राजदूत नियुक्त किया गया। भारत चीन के जनवादी गणराज्य के साथ सम्बन्ध स्थापित करने वाला पहला गैर-साम्यवादी देश था। “हिंदी चीनी भाई भाई” उस समय से एक आकर्षक कहानी बन गई । और द्विपक्षीय आदान-प्रदान प्रारम्भ हुआ।
अक्टूबर १९५० तक चीन ने तिब्बत को लेकर इरादे जाहिर कर दिए। जो भारत-चीन सम्बध के लिहाज से अनुचित था ।सीमा पार कर चीनी सेना ल्हासा की तरफ बढ़ी। 1951 में चमदो के गवर्नर को मजबूर किया गया कि वह तिब्बत पर चीन का आधिपत्य स्वीकार करें। चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर वहाँ कब्ज़ा कर लिया, तब भारत और चीन आपस में सीमा साझा करने लगे और ‘पड़ोसी देश’ बन गए।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू एक स्वतंत्र तिब्बत के पक्ष में थे। उल्लेखनीय है कि भारत और तिब्बत के मध्य आध्यात्मिक सम्बन्ध चीन के लिये चिन्ता का विषय था।
मई 1954 में, चीनी प्रधानमंत्री झोउ एनलाई ने भारत का दौरा किया। चीन और भारत ने संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर किए और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व (पंचशील) के पांच सिद्धांतों की संयुक्त रूप से वकालत की। उसी वर्ष, भारतीय प्रधान मंत्री नेहरू ने चीन का दौरा किया। वह एक गैर-साम्यवादी देश की सरकार के पहले प्रमुख थे, जिन्होंने ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ की स्थापना के बाद से चीन का दौरा किया।
साल भर भी नहीं बीते थे कि, चीन ने इन्हीं सिद्धान्तों का उल्लंघन किया। अपने आधिकारिक मानचित्र में चीन ने भारत की उत्तरी सीमा के एक हिस्से को अपना बताना शुरू किया।
नवम्बर 1956 में चीन के तत्कालीन शासक झोउ एनलाई भारत आए।
सितम्बर 1957 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन चीन गए।
इसी बीच भारत-चीन सम्बध बिगड़ने लगे। क्योंकि चीन ने भारत के कुछ हिस्सों पर अपना हक जताना शुरू कर दिया था। झोउ ने 23 जनवरी, 1959 को कहा कि लद्दाख और नेफा का करीब 40 हजार मील का क्षेत्र चीन का है।
3 अप्रैल 1959 को तिब्बती लोगों के आध्यात्मिक और लौकिक प्रमुख दलाई लामा कई अन्य लोगों के साथ ल्हासा से भाग निकले और भारत आ गए। भारत ने उन्हें शरण दी और चीन बिदक गया।
इसके पश्चात् चीन ने भारत पर तिब्बत और पूरे हिमालयी क्षेत्र में विस्तारवाद और साम्राज्यवाद के प्रसार का आरोप लगा दिया। उसने सितंबर 1959 में मैकमोहन लाइन को मानने से इनकार कर दिया। बीजिंग ने सिक्किम और भूटान के करीब 50 हजार वर्ग मील के इलाके पर दावा ठोंक दिया था।
19 अप्रैल 1960 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और झोउ के बीच नई दिल्ली में मुलाकात हुई।
फरवरी 1961 में चीन ने सीमा विवाद पर चर्चा से मना कर दिया और भारतीय सीमा के पश्चिमी सेक्टर में घुस आया।
नवम्बर १९६२ में चीनी सेना ने लद्दाख और तत्कालीन नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) में मैकमोहन रेखा के पार भारत पर आक्रमण कर दिया और भारत के बहुत बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया। चीन ने तीन-सूत्रीय सीजफायर फॉर्मूला सुझाया जो भारत ने मान लिया। चीन के इस आक्रमण के कारण द्विपक्षीय संबंधों में एक गंभीर झटका लगा।
मार्च 1963 को चीन और पाकिस्तान में समझौता हुआ और पाक अधिकृत कश्मीर का लगभग 5080 वर्ग किलोमीटर हिस्सा चीन को दे दिया गया।
यह भी पढ़े – अनुशासन ही सफलता की कुंजी है। कैसे ? जानिए कैसे ?
1965 में चीन ने भारत पर सिक्किम-चीन सीमा पार करने का आरोप लगाया। नवम्बर में चीनी सैनिक दोबारा उत्तरी सिक्किम में घुसे। इसके बाद तनाव के चलते डिप्लोमेटिक चैनल बंद हो गया।
1974 में भारत ने अपना पहला शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण किया तो चीन ने उसका कड़ा विरोध किया।
अप्रैल 1975 में सिक्किम भारत का हिस्सा बना। चीन ने इसका भी विरोध किया।
अप्रैल 1976 में, चीन और भारत ने पुनः राजदूत संबंधों को बहाल किया। जुलाई में केआर नारायणन को चीन में भारतीय राजदूत बनाया गया। द्विपक्षीय संबंधों में धीरे-धीरे सुधार हुआ।
फरवरी 1979 में तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन की यात्रा की।
1988 में, भारतीय प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने द्विपक्षीय संबंधों के सामान्यीकरण की प्रक्रिया शुरू करते हुए, चीन का दौरा किया। दोनों पक्षों ने “लुक फॉरवर्ड” के लिए सहमति व्यक्त की। और सीमा के प्रश्न के पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान की मांग करते हुए अन्य क्षेत्रों में सक्रिय रूप से द्विपक्षीय संबंधों को विकसित किया।
1991 में, चीन के सर्वोच्च नेता ली पेंग ने भारत का दौरा किया। 31 साल बाद चीन का कोई नेता भारत आया था।
1992 में, भारतीय राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने चीन का दौरा किया। वह पहले राष्ट्रपति थे जिन्होंने भारत गणराज्य की स्वतंत्रता के बाद से चीन का दौरा किया।
सितम्बर 1993 में तत्कालीन पीएम पीवी नरसिम्हा राव चीन गए।
अगस्त 1995 में दोनों देश ईस्टर्न सेक्टर में सुमदोरोंग चू घाटी से सेना पीछे हटाने को राजी हुए।
नवंबर 1996 में चीनी राष्ट्रपति जियांग जेमिन भारत आए।
मई 1998 में भारत के दूसरे परमाणु परीक्षण का भी चीन ने विरोध किया।
अगस्त 1998 में ही लद्दाख-कैलाश मानसरोवर रूट खोलने पर आधिकारिक रूप से बातचीत शुरू हुई।
जब करगिल युद्ध हुआ तो चीन ने किसी का साथ नहीं दिया। युद्ध खत्म होने पर चीन ने भारत से दलाई लामा की गतिविधियां रोकने को कहा ताकि द्विपक्षीय संबंध सुधरें।
नवम्बर 1999 में सीमा विवाद सुलझाने को भारत-चीन के बीच दिल्ली में बैठकें हुईं।
जनवरी 2000 में 17वें करमापा ला चीन से भागकर धर्मशाला पहुंचे और दलाई लामा से मिले। बीजिंग ने चेतावनी दी कि करमापा को शरण दी गई तो ‘पंचशील’ का उल्लंघन होगा। दलाई लामा ने भारत को चिट्ठी लिख करमापा को सुरक्षा मांगी।
1 अप्रैल 2000 को भारत और चीन ने राजनयिक सम्बन्धों की 50वीं बर्षगाँठ मनाई।
जनवरी 2002 में चीनी राष्ट्रपति झू रोंगजी भारत आए।
यह भी पढ़े – इस तरीके से प्रचार करोगे तो कामयाबी चूमेगी आपके क़दम, जानिए कैसे?
2003 में, भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन का दौरा किया। दोनों पक्षों ने चीन-भारत संबंधों में सिद्धांतों और व्यापक सहयोग पर घोषणा पर हस्ताक्षर किए, और भारत-चीन सीमा प्रश्न पर विशेष प्रतिनिधि बैठक तंत्र स्थापित करने पर सहमत हुए।
अप्रैल 2005 में तत्कालीन चीनी राष्ट्रपति वेन जियाबाओ बैंगलोर आए।
2006 में नाथू ला दर्रा खोला गया जो कि 1962 के युद्ध के बाद से बन्द था।
2007 में चीन ने अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री को यह कहकर वीजा नहीं दिया था कि अपने देश में आने के लिए उन्हें वीजा की जरूरत नहीं है।
भारत-चीन सम्बध व चीन की अनावश्यक आपत्ति
जब 2009 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह अरुणाचल गए तो चीन ने इसपर भी आपत्ति जताई।
जनवरी 2009 को मनमोहन चीन पहुंचे। दोनों देशों के बीच व्यापार ने 50 बिलियन डॉलर का आंकड़ा पार किया।
नवंबर 2010 में चीन ने जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए स्टेपल्ड वीजा जारी करने शुरू किए।
अप्रैल 2013 में चीनी सैनिक LAC पार कर पूर्वी लद्दाख में करीब 19 किलोमीटर घुस आए। भारतीय सेना ने उन्हें खदेड़ा।
जून 2014 में चीन के विदेश मंत्री वांग यी भारत आए और भारतीय समकक्ष सुषमा स्वराज से मिले। उसी महीने तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी पांच दिन के दौरे पर गए थे। जुलाई 2014 में भारतीय सेना के तत्कालीन चीफ बिक्रम सिंह तीन दिन के लिए बीजिंग दौरे पर गए थे। उसी महीने ब्राजील में हुई BRICS देशों की बैठक में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पहली मुलाकात हुई। दोनों ने करीब 80 मिनट तक बातचीत की थी।
सितंबर 2014 में शी जिनपिंग भारत आए। नरेन्द्र मोदी ने प्रोटोकॉल तोड़कर अहमदाबाद में उनका स्वागत किया था। चीन ने पांच साल के भीतर भारत में 20 बिलियन डॉलर से ज्यादा के निवेश का वादा किया।
फरवरी 2015 में सुषमा ने चीन की यात्रा की और वहां पर शी जिनपिंग से मिलीं।
मई 2015 में प्रधानमंत्री मोदी का पहला चीन दौरा हुआ। अक्टूबर में जिनपिंग और मोदी की मुलाकात गोवा में BRICS देशों की बैठक में हुई।
जून 2017 में भारत को शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) का पूर्ण सदस्य बनाया गया। मोदी ने जिनपिंग से मुलाकात की और इसके लिए उनका धन्यवाद किया।
2018-19 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वुहान, चीन और महाबलीपुरम, भारत में भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक अनौपचारिक बैठक की।
भारत-चीन सम्बध-अतः हर बार चीन ही सम्बन्धो को बिगाड़ने का अनुचित कार्य करता है ।और दोषारोपण भारत पर करता है।चीन किसी का सगा नही है ।यह हर किसी के साथ सिर्फ विश्वास-घात ही करता है ।मित्रता किसी के साथ नही निभाता ।उसकी यह चाल न केवल भारत ही समझा है,बल्कि आज विश्व भी जान चुका है ।चीन को समझना चाहिए कि भारत आज हर मोर्चे पर मजबूत है ।
1 thought on “भारत-चीन सम्बध जानिए विस्तार से ।”