दान donate क्या है? मनुष्य और अन्य प्राणियों को खुशी देना। जब आप दूसरों को खुशी देते हैं, तो बदले में आपको खुशी मिलती है। खुद की चीज़ देने के बावजूद आपको खुशी होती है, क्योंकि आपने कुछ अच्छा किया है। दान का जीवन में बहुत महत्व है। हर धर्म में पात्र व्यक्ति को दान देने की बात कही गई है।
दान वो है, जो देकर भूल जाया जाए। हिन्दू धर्म में गोदान से लेकर कन्यादान तक की परम्परा है। गरीबों को नियमित दान की बात कही गई है। इस्लाम में भी दान पुण्य का महत्व है, उसे जकात कहा जाता है। आय का एक निश्चित हिस्सा फकीरों के लिए दान करने की हिदायत दी गई है। सनातन धर्मावलम्बी वैसे तो नियमित रूप से दान करते हैं लेकिन श्राद्ध, संक्रांति, अमावस्या जैसे मौकों पर विशेषकर दान पुण्य किया जाता है। blood donate रक्तदान महादान माना गया है
donate दान का शाब्दिक अर्थ है – ‘देने की क्रिया’। सभी धर्मों में सुपात्र को दान देना परम् कर्तव्य माना गया है। हिन्दू धर्म में दान की बहुत महिमा बतायी गयी है। आधुनिक सन्दर्भों में दान का अर्थ किसी जरूरतमन्द को सहायता के रूप में कुछ देना है।
donate परिचय-
Contents
- 1 donate परिचय-
- 1.1 प्रकार type of donate
- 1.2 दानपात्र donate अर्थात दान किसे देना चाहिए?
- 1.3 secret of success सफलता का रहस्य क्या है ?
- 1.4 सफलता के मूल मंत्र जानिए । success mantra
- 1.5 success definition सफलता की परिभाषा क्या है ?
- 1.6 web hosting service अथवा एक वेब होस्ट की आवश्यकता क्या है?
- 1.7 web hosting क्या है? सम्पूर्ण जानकारी
दान किसी वस्तु पर से अपना अधिकार समाप्त करके दूसरे का अधिकार स्थापित करना दान है। साथ ही यह आवश्यक है कि दान में दी हुई वस्तु के बदले में किसी प्रकार का विनिमय नहीं होना चाहिए। इस दान की पूर्ति तभी कही गई है, जबकि दान में दी हुईं वस्तु के ऊपर पाने वाले का अधिकार स्थापित हो जाए।
मान लिया जाए कि कोई वस्तु दान में दी गई किंतु उस वस्तु पर पानेवाले का अधिकार होने से पूर्व ही यदि वह वस्तु नष्ट हो गई तो वह दान नहीं कहा जा सकता। ऐसी परिस्थिति में यद्यपि दान देनेवाले को प्रत्यवाय नहीं लगता तथापि दाता को दान के फल की प्राप्ति भी नहीं हो सकती।
प्रकार type of donate
सात्विक, राजस और तामस, इन भेदों से दान तीन प्रकार का कहा गया है। जो दान पवित्र स्थान में और उत्तम समय में ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है जिसने दाता पर किसी प्रकार का उपकार न किया हो वह सात्विक दान है। अपने ऊपर किए हुए किसी प्रकार के उपकार के बदले में अथवा किसी फल की आकांक्षा से अथवा विवशतावश जो दान दिया जाता है वह राजस दान कहा जाता है। अपवित्र स्थान एवं अनुचित समय में बिना सत्कार के, अवज्ञतार्पूक एवं अयोग्य व्यक्ति को जो दान दिया जात है वह तामस दान कहा गया है।
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कायिक, वाचिक और मानसिक इन भेदों से पुन: दान के तीन भेद गिनाए गए हैं। संकल्पपूर्वक जो सूवर्ण, रजत आदि दान दिया जाता है वह कायिक दान है। अपने निकट किसी भयभीत व्यक्ति के आने पर जौ अभय दान दिया जाता है वह वाचिक दान है। जप और ध्यान प्रभृति का जो अर्पण किया जाता है उसे मानसिक दान कहते हैं।
विद्या दान – विद्या देना
भू दान – भूमि देना
अन्न दान – खाना देना
कन्या दान – कन्या को विवाह के लिए वर को देना
गो दान – गाय देना
1 गो दान- धार्मिक दृष्टि से गाय का दान सभी दानों में श्रेष्ठ माना जाता है। गाय का दान हर सुख और धन-संपत्ति देने वाला माना गया है।
2 अनाज का दान- अन्नदान में गेहूं, चावल का दान करना चाहिए। यह दान संकल्प सहित करने पर मनोवांछित फल देता है।
3 घी का दान- गाय का घी एक पात्र (बर्तन) में रखकर दान करना परिवार के लिए शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
4 तिल का दान- मानव जीवन के हर कर्म में तिल का महत्व है। खास कर के श्राद्ध और किसी के मरने पर। काले तिलों का दान संकट, विपदाओं से रक्षा करता है।
5 भूमि दान- अगर आप आर्थिक रूप से संपन्न हैं, तो किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति को भूमि का दान करने से आपको संपत्ति और संतान लाभ देता है। किंतु अगर यह संभव न हो तो भूमि के स्थान पर मिट्टी के कुछ ढेले थाली में रखकर किसी ब्राह्मण को दान कर सकते हैं।
दान donate के प्रभाव ।
6 सोने का दान- सोने का दान कलह का नाश करता है।
7 चांदी का दान- चांदी का दान बहुत प्रभावकारी माना गया है।
8 वस्त्रों का दान- इस दान में धोती और दुपट्टा सहित दो वस्त्रों के दान का महत्व है। यह वस्त्र नया और स्वच्छ होना चाहिए।
9 गुड़ का दान- गुड़ का दान कलह और दरिद्रता का नाश कर धन और सुख देने वाला माना गया है।
10 नमक का दान- नमक का दान भी काफी कारगर माना गया है। खासकर की श्राद्धों के समय तो नमक दान करने की सलाह दी जाती है।
हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है यह तो संसार एवं विज्ञान का साधारण नियम है इसलिए उन्मुक्त ह्रदय से श्रद्धा पूर्वक एवं सामर्थ्य अनुसार दान एक बेहतर समाज के निर्माण के साथ साथ स्वयं हमारे भी व्यक्तित्व निर्माण में सहायक सिद्ध होता है और सृष्टि के नियमानुसार उसका फल तो कालांतर में निश्चित ही हमें प्राप्त होगा।
डिस्क्लेमर-
”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है. विभिन्स माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं. हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें. इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी. ”
दानपात्र donate अर्थात दान किसे देना चाहिए?
जिस व्यक्ति को दान दिया जाता है उसे दान का पात्र कहते हैं। तपस्वी, वेद और शास्त्र को जाननेवाला और शास्त्र में बतलाए हुए मार्गं के अनुसार स्वयं आचरण करनेवाला व्यक्ति दान का उत्तम पात्र है। यहाँ गुरु का प्रथम स्थान है। इसके अनंतर विद्या, गुण एवं वय के अनुपात से पात्रता मानी जाती है।
इसके अतिरिक्त जामाता, दौहित्र तथा भागिनेय भी दान के उत्तम पात्र हैं। ब्राह्मण को दिया हुआ दान षड्गुणित, क्षत्रिय को त्रिगुणित, वैश्य का द्विगुणित एवं शूद्र को जो दान दिया जाता है वह सामान्य फल को देनेवाला कहा गया है। उपर्युक्त पात्रता का परिगणन विशेष दान के निमित्त किया गया है। इसके सिवाय यदि अन्न और वस्त्र का दान देना हो तो उसके लिए उपर्युक्त पात्रता देखने की आवश्यकता नहीं है। तदर्थ बुभुक्षित और विवस्त्र होना मात्र ही पर्याप्त पात्रता कही गई है।
दान की महिमा तभी होती है जब वह निस्वार्थ भाव से किया जाता है, अगर कुछ पाने की लालसा में दान किया जाए तो वह व्यापार बन जाता है। यहाँ समझने वाली बात यह है कि ”देने का भाव उन्मुक्त ह्रदय से श्रद्धा पूर्वक हो”।
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