world-war-2– प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के कारण यूरोप में जो अस्थिरता बन गयी थी, वहीं से दुसरे अंतरराष्ट्रीय संघर्ष की शुरुआत हो गयी थी और इस संघर्ष को ही इतिहास में world-war-2 कहा गया. वास्तव में प्रथम विश्व युद्ध के समय कुछ देशों को मिली पराजय उनके बीच हुई सन्धियाँ और परिस्थिति के अनुसार बने नियम ज्यादा समय तक नहीं चल सके और दो दशक में ही टूट गये. जिसके पूर्व से भी अधिक विनाशकारी परिणाम सामने आये. आर्थिक और राजनीतिक रूप से अस्थिर जर्मनी में सत्ता बढ़ाने के लिए, एडॉल्फ हिटलर और उनके राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी ने देश को फिर से स्थायी किया और विश्व में अपना प्रभुत्व बढ़ाने जैसे अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए इटली और जापान के साथ रणनीतिक संधि पर हस्ताक्षर किए. ग्रेट ब्रिटेन को जर्मनी पर आक्रमण करने की तब प्रेरणा मिली, जब हिटलर ने पोलैंड पर आक्रमण किया (1 सितंबर 1939 ) और इस तरह से world-war-2 की औपचारिक शुरुआत हो गई . लेकिन तब ये किसी को पता नहीं था, कि अगले छह वर्षों में ये संघर्ष किसी भी पिछले युद्ध की तुलना में बहुत ही ज्यादा विनाशकारी होगा और दुनिया की बहुत बड़ी भूमि और संपत्ति को नष्ट कर देगा.
world-war-2 की उत्पत्ति (Origins of World War II)
दूसरा विश्व युद्ध कोई एक घटना का परिणाम नहीं थी, इसलिए इस विनाश के लिए किसी भी एक ऐतिहासिक घटना को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता हैं. जापान की रूस-जापान युद्ध में सिजरिस्ट (czarist) पर अनपेक्षित जीत ने जापान के लिए एशिया और पसिफिक में आगे बढ़ने के रास्ते खोल दिए थे. वैसे भी यूनाइटेड स्टेट्स के यूएस नेवी ने 1890 में समुंद्री युद्ध की तैयारी शुरू कर दी थी, इसे “वॉरप्लान ऑरेंज” कहा जाता था और दूसरे विश्व युद्ध तक इस प्लान को नई-नई तकनीकों से अपडेट किया जाता रहा था.
वास्तव में प्रथम विश्व युद्ध से लेकर world-war-2 तक का समय बहुत ही अस्थायी समय था. 1929 के “काले मंगलवार (ब्लैक ट्युसडे)” से ही विश्वभर में मंदी का समय शुरू हो गया था. 1933 में हिटलर के हाथ में सत्ता आने पर उसने 1918 की वरसाइल की संधि को तोड़ दिया, जिससे आर्थिक गिरावट आ गयी, और यह घोषणा की “जर्मनी को लिविंग स्पेस या लेबेंसेरौम (Lebensraum ) की आवश्यकता हैं” हिटलर ने पश्चिमी देशों की शक्तियों का परीक्षण शुरू कर दिया और समस्त संधियों को समझकर उनसे मिलने वाले पश्चिमी देशों के लाभ को समझना शुरू किया. 1936 में राहीनलैंड में रिमिलीटराइजेशन करने के लिए वेर्सलीएस (Versaille) और लोकार्नो (Locarno) की संधि एक बार फिर से तोड़ी गयी, जो की यूरोप का बॉर्डर कहलाता था.
ऑस्ट्रिया के अंचलस (Anschluss) और चेकोस्लोवाकिया के रैंप पर कब्जे का कारण लेबनेंसम तक हड़पना हिटलर की महत्वकांक्षा थी. तीसरा रोम बनाने की इटली की इच्छा ने देश को नाजी जर्मनी के साथ घनिष्ठ संबंधों में धकेल दिया. इसी तरह, जापान ने 1919 में पेरिस में अपने बहिष्कार से नाराज होकर, आत्मनिर्भर राज्य बनने के लिए जापान के साथ एक पेन-एशियाई क्षेत्र (Pan-Asian sphere ) बनाने की मांग की.
और इस तरह प्रतिस्पर्धी विचारधाराओं ने अंतर्राष्ट्रीय तनाव की आग को और अधिक बढा दिया. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रूस में हुयी बोल्शेविक क्रान्ति और गृहयुद्ध के बाद सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ (यूएसएसआर) की स्थापना हुयी थी, जो इससे पहले तक व्यापक कम्युनिस्ट राज्य कहलाया जाता था. लेकिन पश्चिमी गणराज्य और पूंजीपति बोल्शेविज़्म के प्रसार से डर गये थे. साथ ही इटली, जर्मनी और रोमानिया जैसे कुछ देशों में, साम्यवाद की प्रतिक्रिया में कुछ हद तक रूढ़िवादी समूह सत्ता में आ गए.
जर्मनी, इटली और जापान ने पारस्परिक समर्थन के समझौते पर हस्ताक्षर किए, लेकिन इस डर से कि सहयोगी राष्ट्रों से उनका सामना होगा, उन्होंने कभी भी कार्रवाई की एक व्यापक या समन्वित योजना विकसित नहीं की.
इतने सारे घटनाक्रमों में दूसरे विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि कब तैयार हुई, दुनिया समझ ही नहीं सकी, लेकिन ये तय है कि ये युद्ध किसी भी एक देश की महत्वकांक्षा या एक जगह हुई क्रान्ति का परिणाम नहीं था, बल्कि बहुत सारे कारण थे, जो इस विध्वंसकारी युद्ध के लिए जिम्मेदार थे.
द्वितीय विश्व युद्ध कब शुरू हुआ (When did World War II Begin)
कुछ का कहना है कि दूसरे विश्व युद्ध की भूमिका पहले विश्व युद्ध के समापन के साथ ही बन गयी थी, लेकिन कुछ मतों के अनुसार इसकी वास्तविक शुरुआत 1931 में हुयी थी, जब जापान ने चाइना से मंचुरिया छीन लिया था. इधर इटली ने 1935 में एबीसनिया में घुसकर उसे हरा दिया था. 1936 में एडोल्फ हिटलर ने जर्मनी के राइनलैंड में री-मिलीट्राईजेशन का काम किया था. 1936 से लेकर 1939 तक स्पेन में सिविल वॉर हुआ था, 1938 में जर्मनी ने चेकोसलावाकिया पर अधिकार कर लिया था. लेकिन फिर भी इसके लिए 2 दिनांक विशेष रूप से याद रखी जाती हैं, जिसमें 7 जुलाई 1937 जिसे दुसरे विश्व युद्ध के शुरुआत का दिन माना जाता हैं, जब मार्को पोलो पुल हादसा हुआ था, जिससे जापान और चाइना के बीच सबसे लम्बा युद्ध शुरू हुआ था और 1 सितम्बर 1939 का दिन जब जर्मनी ने पोलैंड में घुसपैठ की थी, जिसके कारण ब्रिटेन और फ़्रांस ने हिटलर के नाजी राज्य से प्रतिशोध लेने की घोषणा की थी और युद्ध छिड गया था. पोलैंड की घुसपैठ से लेकर युद्ध तब खत्म हुआ, जब जापान ने सितम्बर 1945 को सरेंडर कर दिया, लेकिन इतने सारे वर्षों में दुनिया के ज्यादातर देश युद्ध में ही व्यस्त रहे.
world-war-2 के कारण (Causes of World War II)
पेरिस की शांति वार्ता (The Peace of Paris) – प्रथम विश्व युद्ध के अंत में हुई समस्त संधियों में कुछ सन्धियाँ ही ऐसी थी, जो सभी देशों को संतुष्ट करती. जर्मनी ऑस्ट्रिया और कई अन्य देश भी पेरिस की संधि से खुश नहीं थे, क्योंकि इसके अनुसार उन्हें हथियारों का उपयोग बंद करना था. जर्मनी ने आक्रमण के डर से वर्सेली की संधि पर हस्ताक्षर कर दिए.
आर्थिक मुद्दे (Economic Issues) – प्रथम विश्व युद्ध ने कई देशों की आर्थिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव डाला था, हालांकि यूरोपियन आर्थिक अवस्था 1920 तक बहुत ही अच्छी स्थिति में थी, लेकिन यूनाइटेड स्टेट में आये परिवर्तन ने यूरोप में भी मंदी का दौर ला दिया था. और ऐसी खराब आर्थिक स्थिति में कम्युनिज्म और फासिज्म में अपनी शक्तियाँ बढा ली थी.
नेशनलिज्म (Nationalism) – प्रथम विश्व युद्ध के बाद यूरोप में देशभक्ति का ज्वार उमड़ पड़ा था, वो भी विशेषकर उन देशों में जो युद्ध में हार गये थे.
डिक्टेटरशिप (Dictatorships) – राजनीतिक अस्थिरता और प्रतिकूल आर्थिक स्थिति के कारण कुछ देशों में डिक्टेटरशिप बढने लगा. जिनमें भी जर्मनी, इटली, जापान और सोवियत संघ मुख्य थे.
विफल अपीलें और संधि वार्ता (Failure of Appeasement) – पहले विश्व युद्ध के पश्चात चेकोस्लोवाकिया एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया था, लेकिन 1938 तक, जर्मन क्षेत्र से घिरा हुआ था. हिटलर पश्चिमी चेकोस्लोवाकिया के एक क्षेत्र सुडेनेटलैंड को भी जर्मनी में जोड़ना चाहता था, जहां कई जर्मन रहते थे. ब्रिटिश प्रधानमंत्री नेविल चेम्बरलेन हिटलर को प्रसन्न करना चाहते थे और हिटलर के वादे के बाद सुडेनलैंड के लिए अपनी मांगों पर सहमत हुए थे, कि वह अधिक क्षेत्र की मांग नहीं करेंगे. मार्च 1939 के दौरान ही बचे हुए चेकोस्लोवाकिया पर भी हिटलर ने कब्जा कर लिया.
दो पक्षों का बनना और विभिन्न देशों की स्थिति
इस तरह पूरी दुनिया के देश दो प्रतिध्वन्धियों में बंट गये, जिनमें भी कुछ देश ऐसे थे, जो उदासीन थे और जिनका ना प्रथम विश्व युद्ध और ना ही world-war-2 में कोई योगदान था, लेकिन साथ ही भारत जैसे कई ऐसे देश भी थे, जिन पर किसी यूरोपीय राष्ट्र का शासन था, इस कारण उन्हें उसके पक्ष में ही रहने का दबाव था. लेकिन फिर भी दूसरे विश्व युद्ध के मुख्य खिलाड़ियों में जर्मनी, जापान और इटली के लोगों के नाम सामने आते हैं, जिनमें एडोल्फ हिटलर, डेर फर्दर (Der Furher), जापान के प्रधानमंत्री एड्माईरल हिडेकी तोजो, इटली के प्रधानमंत्री बेंटो मुस्सोलीनी बड़े नाम थे. इस तरह जर्मनी, जापान और इटली ने एक्सिस पावर नामक एक गठबंधन बनाया. बुल्गारिया, हंगरी, रोमानिया और दो जर्मन निर्मित राज्य – क्रोएशिया और स्लोवाकिया – अंत में शामिल हो गए.
इनके सामने यूनाइटेड स्टेट्स, ग्रेट ब्रिटेन, चाइना और सोवियत संघ ने गठबंधन बनाया था, और ये ग्रुप ध्रुवीय शक्तियों के सामने खड़ा हुआ था. 1939 से लेकर 1944 तक लगभग 50 देश आपस में कोई ना कोई कारण से लड़ चुके थे. और 1945 में 13 और देश इस युद्ध में शामिल हो गये थे, जिनमें ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्राजील, ब्रिटिश कामनवेल्थ ऑफ़ नेशनस, कनाडा, भारत, न्यूजीलैंड, साउथ अफ्रीका, चेकोस्लोवाकिया, डेनमार्क, फ्रांस, ग्रीस, नीदरलैंड, नोर्वे, पोलैंड, फिलिपिन्स और यूगोस्लाविया बड़े नाम हैं. जिनमें भी यूनाइटेड स्टेट्स के प्रेसिडेंट फ्रेंक्लिन.डी.रूजवेल्ट, ग्रेट ब्रिटेन के प्राइम मिनिस्टर विंस्टन चर्चिल,चाइना के जनरल चिआंग काई-शेक,सोवियत यूनियन के जनरल जोसफ स्टॅलिन मुख्य नाम हैं.
इस तरह पूरे युद्ध में गठबंधन वाले राष्ट्र और ध्रुवीय देशों को मिलाकर कुल 70 मिलियन लोगों की फ़ौज लड़ी थी. फीनलैंड ने किसी भी पक्ष को आधिकारिक रूप से जॉइन नही किया था, लेकिन इसके और सोवियत संघ के युद्ध ने विश्व युद्ध द्वितीय की शुरुआत कर दी थी. 1940 में जरूरत को देखते हुए फिनिश ने सोवियत रूस को पछाड़ने के लिए नाजी जर्मनी को जॉइन कर लिया था. 1944 में जब फीनलैंड और सोवियत के मध्य शांति की घोषणा हो गयी, तो फीनलैंड ने सोवियत को हटाने के लिए जर्मनी के साथ मिल गया था. स्विट्जरलैंड, स्पेन, पुर्तगाल और स्वीडन ने युद्ध के समय उदासीन रहने की घोषणा की थी.
द्वितीय विश्व युद्ध के दुष्परिणाम
world-war-2 की जो सबसे बड़ी हानि सामने आई वो थी जन-हानि. अमेरिका का नागासाकी और हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराने को मानव सभ्यता के इतिहास की सबसे क्रूर, विनाशकारी और दर्दनाक घटना माना गया हैं. जिसका परिणाम कई पीढ़िया भुगत चुकी हैं और कई भुगतने वाली हैं, इस कारण इसके बाद इस पर पूरी तरह रोक लगाई गयी. लेकिन फिर भी युद्ध के दौरान कुल 12 मिलियन जवानों को मार गिराया गया, जबकि 25 मिलियन नागरिक भूख, बिमारी इत्यादि कारणों से मारे गये. 24 ,मिलियन लोग इस युद्ध में घायल और विकलांग हुए. यूएस द्वारा जापान में बम गिराने के कारण 160,000 जन-हानि हुयी. इस तरह दूसरा विश्व युद्ध हर दृष्टि से मानव जाति के लिए भयंकर विनाशकारी युद्ध सिद्ध हुआ.
हालांकि world-war-2 के समय हताहत आम-जनों की वास्तविक संख्या कभी नहीं जानी जा सकती. इनमें बहुत सी मौतें तो बम ब्लास्ट, नर-संहार, भूख और युद्ध से जुडी अन्य गतिविधियों के कारण हुयी थी. हिटलर के दैविक “अंतिम समाधान” के हिस्से के रूप में नाजी एकाग्रता शिविरों में अनुमानित 45-60 मिलियन लोगों की हत्या में 6 मिलियन यहूदी मारे गए थे, जिन्हें अब होलोकॉस्ट के नाम से जाना जाता है. जबकि सोवियत यूनियन के 7 मिलियन सैनिक घायल हुए थे.
ये माना जाता हैं कि world-war-2 के दौरान लगभग 6 मिलीयन यहूदी तो नाज़ी कंसंट्रेशन कैंप में ही मारे गये थे. और रोम के हजारों लोगों की हत्या कर दी गयी थी, जिनमें मानसिक और शारीरिक रूप से असक्षम लोग भी शामिल थे.
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